अब नायिकाओं के नामों से भी फिल्मों को पहचान मिलने लगी हैं।
पहले साल में एक या दो फिल्में औरतों को केन्द्र में रख कर बनाई जाती थी लेकिन आज महीनों में दो-तीन फिल्में ऐसी देखने को मिलती है। यह बहुत ही गजब का बदलाव है। जनता ऑनलाइन कंटेंट को देखकर जागरूक हो गई है। अब वह दस साल पुराने विषय की फिल्में सिरे से नकार देते हैं। इसी वजह से इस नए दौर में महिला आधारित फिल्में आने लगी हैं। मुझे लगता है कि हमने इस विषय पर पहले काम ही नहीं किया था। हमारे यहां एक अभिनेता की जो फीस होती है वह हमारी फिल्मों का पूरा बजट होता है ।
फिल्में चुनते समय आप किस बात को ध्यान में रखती हैं।
मैं सिर्फ एक ही बात ध्यान रखती हूं कि क्या मैं इस फिल्म को अपनी मेहनत की कमाई के 500 रुपये लगाकर देख सकती हूं या नहीं। अपनी जिंदगी के वापस ना लौटने वाले तीन घंटे मैं इस फिल्म पर लगाऊंगी या नहीं। पैसा तो मैं फिर भी कमा लूंगी लेकिन वह समय वापस नहीं आ सकता है। लोगों का समय भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मेरा समय। इसलिए मैं हमेशा यही चाहती हूं कि लोगों का समय और पैसा बर्बाद ना हो।
मेरी जिंदगी का पूरा आधार दिल्ली ने ही बनाया है। आप लड़की को दिल्ली से बाहर निकाल सकते हैं लेकिन दिल्ली को लड़की से बाहर नहीं निकाल सकते हैं। मैं हमेशा से दिल्ली की रही हूं और हमेशा दिल्ली की ही रहूंगी। मुंबई मेरी कर्मभूमि है। लेकिन मेरी जन्मभूमि तो हमेशा दिल्ली ही रहेगी। मेरी पहचान दिल्ली से ही है और मुझे उसपर गर्व है।
तमाम गंभीर मुद्दों की फिल्में करने के बाद लोगों ने आपको प्राइव वीडियो पर स्टैंड अप कॉमेडी करते देखा, हास्य और व्यंग्य के बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है?
मैं कॉमेडी देखना और करना दोनों ही पसंद करती हूं। मुंबई आने के बाद जब बहुत अधिक व्यस्त नहीं रहती थी तब छुट्टी के दिन मैं स्टैंड अप कॉमेडी देखती ही देखती थी। रोजमर्रा जिंदगी में मैं थोड़ा बहुत मजाक कर लेती हूं। लेकिन वहां खड़े होकर सबके सामने ये करना मुश्किल होता है। मेरा हास्य काफी व्यंगात्मक होता है इसलिए आधे लोगों को समझ नहीं आता। फिर भी मैंने सोचा करके देखते हैं। जिंदगी में हमेशा कुछ ना कुछ रोमांचक करते रहना चाहिए। इसके बाद मुझे स्टैंड अप के ऑफर भी आने लगे।
व्यवस्था के खिलाफ नाराजगी व्यक्त करने वाले कलाकारों में शामिल होना फिल्मी करियर के लिए कितना जोखिम भरा है?
मैं अपनी रीढ़ बेच कर गुजारा नहीं कर सकती। मेरा तर्क सिर्फ इतना था कि जब हमारी फिल्में आती हैं तब हम ऐसे ही कॉलेजों में अपनी फिल्म प्रमोशन के लिए जाते हैं। घर से मिले पैसे से वे हमारी फिल्में देखते हैं। अब अगर उन्हीं छात्रों के साथ हिंसा हुई है और अगर हम इसकी आलोचना भी ना करें तो यह तो सही नहीं होगा। मैं जेएनयू या जामिया से तो नहीं पढ़ी हूं, मेरी पढ़ाई इंद्रप्रस्थ से हुई है लेकिन मैं यह बात समझती हूं कि अगर मेरे कॉलेज में आकर अगर कोई मेरा सिर फोड़ दे तो वह बहुत बड़ा धक्का होगा मेरे लिए। यह किसी भी विचारधारा की बात नहीं है। यह सही और गलत के बारे में है।
अपनी अगली फिल्मों में आप एक क्रिकेटर और एक धावक की भूमिका भी निभाने वाली हैं। शारीरिक तौर पर ये कितना चुनौतीपूर्ण है?
साल 2020 मेरे लिए फिटनेस के तौर पर सर्वोत्तम रहेगा। पहले मुझे 'रश्मि रॉकेट' करनी है। उसके बाद मुझे शाबाश मिट्ठू शुरू होगी। मुझे खेलना सच में बहुत अच्छा लगता है और अब तो एक बहाना और मिल गया है। रश्मि रॉकेट की ट्रेनिंग को एक महीना हो गया है, दो महीने और है। उसके ठीक बाद मैं क्रिकेट की ट्रेनिंग लेना शुरू करूंगी। मेरी कोशिश रहती है कि मैं हर बार कुछ अलग तरह की फिल्में करूं ताकि लोग बोर ना हो जाएं।
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